रेडियो - 1 Dhruvin Mavani द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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रेडियो - 1






रेडियो ! कुछ ऐसे ही नाम से वो मुझे चिढ़ाया करता था और मुझे खुशी है की मैं किसीकी जिंदगी का रेडियो रही हूँ । पुराना ही सही मगर असरदार ! जो हमेशा ही बजता रहता है ! बिल्कुल धड़कनों की तरह आहिस्ता आहिस्ता ...। जिसकी आवाज कभी सुनाई नही देती ...

उस वक्त को गुज़रे हुए आज सत्ताईस साल हो गए । लेकिन आज भी ऐसा लगता है जैसे की कल की ही बात हो । डर लगता है उस वक्त को याद करते हुए भी । कही किसीको पता चल गया तो न जाने क्या होगा । अब मैं जिंदगी में बहोत आगे बढ़ आयी हूँ । अब न मैं पीछे मुड़ कर देख सकती हूँ और न ही बीता हुआ वो वक्त लौटकर वापस आ सकता है । कोई था जो मुझे हमेशा कहता था की कभी जिंदगी में ऐसा वक्त आये जब अपने दिल की बात तुम किसीसे न कर सको तो वो बाते लिख लिया करो । इससे मन हलका हो जाता है । जस्बात बहते है आँसुओ में तो उसे बह जाने दो । इससे अच्छा महसूस होता है । लेकिन ये बोझ हल्का करने में मैंने सत्ताईस साल लगा दिए । एक लंबा वक्त ...जो बोझ बनकर हमेशा मेरे दिल पर सवार रहा है । लेकिन शायद अब मुझसे नही होगा । इसीलिए इस डायरी को अपना दोस्त मानकर आज सब कुछ लिख दूँगी । तो चल डायरी आज तुझे मेरी जिंदगी से रूबरू करवाती हूँ । इसके लिए हमें सत्ताईस साल आगे जाना होगा ।






1.





'ओह्ह नो , 8:30 बज गए । आज भी उठने में मुझे देर हो गयी । पता नही मैं कब सुधरूँगी । लेकिन इसमें मेरी भी कोई गलती नही । सारी गलती इस डिब्बे जैसे अलार्म की है । मुझे उठाना इसका काम है । जो ये ठीक से नही करता ।' मैंने सारा दोष उस कोने में पड़े अलार्म पे डालते हुए कहाँ । जो अपने सेट किये वक्त पर कई बार बज चुका था । मैं इतनी हड़बड़ी में थी कि कुछ समझ मे नही आ रहा था ।

'वो मेरा कब से इंतजार कर रहा होगा । बिचारा , मैं हमेशा ऐसा ही करती हूँ ।
मुझे एक घंटे पहले पहोचना था । पता नही उसके दोस्त भी मेरे बारे में क्या सोचते होंगे ।' ऐसे सेकड़ो सवालों से मेरा दिमाग़ भरा पड़ा था । मैं इसके अलावा और कुछ सोच भी नही सकती थी । जैसे तैसे कपड़े बदलकर , जैसे तैसे बाल सँवार कर मैं गाड़ी निकालकर चली गई ।

'आज ही सब को जल्दी पहोचाना है क्या ? ऑफ हो , प्लीज़ आज मुझे जाने दो वरना वो आज तो मुझे मार ही डालेगा ।' ट्रैफिक में फसी हुई में खुद ही बड़बड़ा रही थी । या फिर शायद चिल्ला रही थी । क्योंकि सब मेरे सामने देख रहे थे । लेकिन वहाँ से निकलना भी किसी जंग के बराबर था । काफ़ी मशक्कत के बाद मैंने वो जंग जीती और अपनी मंजिल पर पहोच ही गयी । मेरे पास ठीक से गाड़ी पार्क करने का समय ही नही था । मैं सीधी गाड़ी से उतरकर बस भागने लगी । सब मुझे घूर रहे थे । लेकिन मुझे उसकी चिंता नही थी । मुझे चिंता थी कि मैं आज फिर उसे कैसे मनाऊँगी । और मैं एक कमरे भी पहोंची जहाँ मुझे पहोचाना था । मैंने देखा कि वो अकेला बैठा था । मुझे देखकर उसने अपना बैग उठाया और चलने लगा ।

'सो सॉरी , वियु । मैं जानती हूँ आज फिर मैंने देर करदी और हर बार की तरह आज भी तुम मुझसे नाराज हो । लेकिन पक्का प्रोमिस अगली बार ऐसा नही होगा ।' वो बस अपना बैग लेकर चला जा रहा था । मैं अब उसके पीछे भाग रही थी । मैंने उससे बैग ले लिया । फिर भी उसने कुछ नही कहाँ । गाड़ी के पास पहोचकर वो मेरे सामने मुड़ा ओर मेरे सामने देखने लगा ।

'ऑफ हो , ममा । बस भी कीजिये । देर हो गयी तो हो गयी । अब कितनी बार सॉरी बोलोगी । मैं आपसे नाराज नही हूँ । अब मैं छोटा बच्चा थोड़ी न हूँ । अब तो मैं बड़ा हो गया हूँ ।' कहकर वो गाड़ी में बैठ गया । मुझे उसकी बातों पर जैसे यकीन ही नही हो रहा था । एक तो वो सिर्फ पांच साल का है और ऐसी बाते कर रहा है । ओर दूसरा वो ऐसे बातें तो कभी नही करता था । मुझे देर हो गयी हो और वो गुस्सा न हुआ हो ऐसा आज तक कभी नही हुआ था । फिर उसे मनाने के लिए मुझे न जाने कितने पापड़ बेलने पड़ते थे । तब जाकर वो मानता था । लेकिन आज उसने मुझे हैरान कर दिया ।

'ममा , ड्राइव मुझे करनी है क्या ? चलों ना जल्दी । आपको पता है आपकी वजह से मेरे कार्टून मिस हो जाएंगे ।' उसने मुझे सोच से बाहर लाते हुए कहा और वो भी दरवाजे से आधा बाहर टंगा हुआ था । वैसे वो कभी आगे की सीट पर नही बैठता था आज शायद पहली बार आगे बैठा था ।

'वियान , क्या आप सच में ममा से नाराज नही हो ।' मैंने उससे थोड़ा डरते हुए पूछा । क्योकि सच मे मुझे यकीन नही हो रहा था ।

'हम्म' , वो फ़ोन में गेम खेलने में डूबा हुआ था । उसने बस इतना जवाब दिया ।

'मतलब की सच्ची । फिर देखो घर पहोचकर आप कोई जिद नही करोगे और नाराज भी नही होंगे । प्रोमिस करो ममा को ।' मैंने फिर से उसे कहाँ । इसबार उसने फ़ोन रख दिया और मेरे सामने देखकर बोला ,

'ऑफ हो , ममा आप भी ना । मैं नाराज होता हूँ तो आप कहती हो कि अच्छे बच्चे नाराज नही होते औऱ अब जब मैं नाराज नही हुआ तो आपको यकीन नही हो रहा है । तो आप ही बताओ मैं करु तो क्या करूँ ।' उसने अपनी प्यारी सी आवाज में मुझे डाँटते हुए कहाँ । सच मे छोटे बच्चों की डाँट खा कर भी कितना मजा आता है ।

'अच्छा बाबा , सॉरी बस । अब नही पूछूँगी । तुम नाराज हो कि नही । क्योकि ममा को पता चल गया कि आप नाराज नही हो ।' मैंने उसे शांत करते हुए कहा ।

'अच्छा , वियु । ये बताव की आज तुम आगे की सीट पर क्यो बैठे । तुम तो हमेशा पीछे की सीट पर ही बैठते हो क्योकि वहाँ ज्यादा जगह होती है और तुम खेल भी सकते हो ।' मैंने उसे पूछा ।

'हाँ , ममा । मुझे पीछे बैठना ही पसंद है । लेकिन किसी ने मुझे सिखाया है कि जब तक आप अपनो के साथ हो तब तक उनके साथ वक्त बिताओ । वो हमेशा आप के साथ नही होंगे । कल पर भरोसा नही किया जा सकता । इसलिए आज ही जी लो ।' उसने कहा और मैं बस उसे ही देखती रही । मतलब की पांच साल के बच्चे ऐसी बाते नही करते ।

'बातें तो तुमने बहोत अच्छी की है । लेकिन जरा ये तो बताओ कि ये सब तुम्हे किसने सिखाया ? कौंन है वो जिसने तुम्हे इतना सब सीखा दिया । औऱ मैं इतने सालों से मेहनत कर रही हूँ लेकिन तुम्हे सीखा नही पायी ।' मैंने उसे चिढ़ाते हुए कहा । घर पहुँचकर ही उसने गाड़ी से उतरकर दौड़ लगादी और वो गिरते गिरते बचा ।

'आराम से वियु , गिर जाओगे बेटा । तुम्हे चोट लग जायेगी और फिर ममा डाँटेगी तो रोना मत । ये लड़का भी ना कभी सुनी है मेरी जो आज सुनेगा । वियान , तुम सुन रहे हो । कहाँ गए ?' मैंने घर मे दाखिल होते हुए कहा ।

'वाह , आते ही वीडियो गेम । पता नही पिकनिक में इसके बिना इतने दिन तुम कैसे रह सके । तुम सुन रहे हो । चलो , सबसे पहले मैं तुम्हे नहलाती हूँ । बाद में नाश्ता करो और फिर आराम । तुम लंबा ट्रैवेल करके आये हो । बाद में जितनी गेम खेलनी हो खेल लेना । वियु , तुम सुन रहे हो चलो । बोला ना मैंने ।' मैंने हल्की डाँट लगाते हुए कहा ।

'नही , मुझे नही नहाना । मैं बिल्कुल फ्रेश हूँ और मुझे भूख भी नही लगी ।' उसने जवाब तो दिया लेकिन उसका पूरा ध्यान खेलने में ही था ।

'अच्छा , बच्चु । ऐसी बात है । जरा ठहरो अभी गेम बंध कर देती हूँ तब तुम्हे पता चलेगा । चुपचाप मेरे साथ चलो वरना मैं गेम बंध कर रही हूँ ।'

' नही , पहले मुझे पापा से बात करनी है । कितने दिन हो गए मैंने उनसे बात नही की और जब मैं गया तब भी वो यहाँ नही थे और अब मैं लौट आया फिर भी वो नही आये । और मुझे आपकी शिकायत भी करनी है कि आप मुझे डाँट रही है ।' उसने शिकायत करते हुए कहा ।

' हाँ हाँ , पापा के चमचे जो कहना हो वो कह देना । लेकिन अभी बात नही कर सकते । पापा काम में बिजी होंगे । हम शाम को बात करेंगे ठीक है । अभी तो चलो और नहा लो ।' मैंने उसे समजाया ।

एक नंबर का जिद्दी है । पता नही किसके जैसा हुआ है । एक बात में तो कभी समझता ही नही । नही था तो इतने दिन कितनी शांति थी । आते है मस्ती शुरू । किया मैं भी ...अभी थोड़े वक्त पहले ही कह रही थी कि वियु नही था तो कही भी मन नही लग रहा था और अब मैं ही शुरू हो गई । बच्चा है वो अभी ; मस्ती तो करेगा ही और अगर वो मस्ती नही करेगा तो कौन करेगा । ऑफ हो ...मैं भी ये सब क्या सोच रही हूँ । मेरा दिमाग तो ठीक है की नही !

'वियान , शैतानी मत करो साबुन आँख चला जायेगा तो जलन होगी । चुप चाप बैठो । ऑफ हो , वियान मुझे गिला मत करो मुझे ओर भी बहोत से काम है ।' मैंने उसे रोकते हुए कहा ।

'आप हमेशा इतनी सिरियस क्यों रहती है ममा । हमेशा हड़बड़ी में ही रहती है । क्या आप बचपन से ऐसी ही है !' उसने खिलखिलाकर हँसते हुए पूछा ।

'सच बताऊ , बचपन मे मैं भी तुम्हारी ही तरह शैतान ही थी । मैं भी बहोत शरारत करती थी । मैं भी आप की तरह ही अपनी ममा को बहोत परेशान किया करती थी ।' मैंने भी हँसते हुए कहा ।

'तो नानी भी आपको डाँटती थी । अच्छा अब समझ मे आया । नानी आपको डाँटती थी इसलिए आप मुझे भी डाँटती हो । मैं भी नानी को डाटूंगा । अगर वो आपको नही डाँटती तो आप भी मुझे नही डाँटती ।' उसने अपनी प्यारी सी आवाज में शिकायत करते हुए कहा ।

'हाँ बाबा , ठीक है जब मिलो तब अच्छे से डाँट लेना । चलो , अब जल्दी से कपड़े पहन लो । और फिर नाश्ता करने चलो । मैं एक भी बहाना नही सुनूँगी । ' मैंने उसे वॉर्निंग देते हुए कहा ।

आज कैसे बारह बज गए पता ही नही चला और कितना काम है । एक बार ये लड़का नाश्ता कर ले फिर मैं इत्मिनान से अपना काम निपटा सकती हूँ । लेकिन ये लड़का मेरी सुने तब ना ।

'वियु , बेटा नाश्ता तैयार है चलो । सिर्फ दूध नही दूँगी , बस । थोड़ा खा लो बाद मे गेम खेलना । बेटा , सुन रहे हो । चलो भी ममा को अब बहोत परेशान मत करो ।' मैंने उसके कमरे में जाते हुए कहा । मैंने देखा कि वो सो गया था ।

' ये लड़का भी ना । थोड़ा नाश्ता कर लेता बाद में सो जाता ।' मैने उसे ठीक से सुलाते हुए कहा । " सच मे तुम्हारे बिना घर ; घर नही लगता । अब तक ये घर भी खामोश था और तुम्हारे आने से देखो ये भी खिल उठा है । रौनक लौट आयी है । तुम्हारी बहोत याद आयी बेबी । I Love you ...वियु ।' मैने उसके माथे को चूमते हुए कहा और धीरे से दरवाजा बंध कर के चली गई ।

नाश्ता तो इसने किया नही । चलो , कोई बात नही जब जाग जाएगा तब कुछ बनाकर खिला दूँगी । अब मैं भी बहोत थक गई हूँ । वो जब तक जागे तब तक थोड़ी देर मैं भी आराम कर लेती हूँ ।

' ओह नो , रुद्र के पांच मिसकॉल आ गए है । काम के चक्कर मे ध्यान ही नही रहा । मेसेज भी किये है । मैं भी ना पता नही मेरा ध्यान कहा रहता है । वो भी अब गुस्सा करेगा । ' मैंने मेसेज को ओपन करते हुए कहा ।

" तुम भी न , पता नही अपना फ़ोन कही भी रख कर भूल जाती हो । "
" अच्छा मैंने ये जानने के लिए ही फ़ोन किया था कि वियान अच्छे से पहोच गया ना । उसकी फिक्र हो रही थी । बहोत दिन हो गए उसे मिले हुए । "
" अभी तो मैं मीटिंग में जा रहा हूँ तो अब सीधे शाम को ही बात हो पाएगी । तो शाम को बात करते है । "
" I love you so much...Jan " मैंने उसका आखिरी मेसेज पढ़ा और फिर रिप्लाई कर दिया ।
" I love You too ."






2.




' तुम मुझे वहाँ ऐसे नही छोड़ सकते । तुम्हे भी पता है मुझे जंगली जानवर बिल्कुल पसंद नही है। ' मैंने उससे चिड़ते हुए कहा ।

' वो कितने बड़े बड़े और कुछ तो कितने डरावने होते है । उन्होंने मुझे कुछ कर दिया तो तुम क्या करोगे । ना बाबा ना ; मैं तो तुम्हारे साथ ही वापस आ जाऊंगी । ' मैंने उसकी ओर देखते हुए उससे कहा ।

' मैं तुम्हे वापस लाने की भूल भला क्यों करूँगा तुम्ही बताव । और तो और वो अगर तुम्हें कुछ कर भी दे तो मुझे तुम्हे झेलना नही पड़ेगा । लेकिन सच बताऊ मुझे नही लगता कि वो तुम्हे चोट पहुचाएंगे । क्योकि भला तुम ही बताओ कि एक रिश्तेदार दूसरे रिश्तेदार को नुकसान पहुचाते है कभी । ' उसने मुझे चिढ़ाते हुए कहा । और इस बार उसने मेरे हाथ का थप्पड़ भी खाया ।

' तू न अपनी ये आदत सुधार ले । बात बात पर मारती रहती है । सच बोल रहा हूँ एक मैं ही हूँ जो तुम्हे जेल सकता हूँ । अगर और कोई होता तो कब का भाग गया होता । ' उसने नाराज होते हुए कहा । लेकिन मैं जानती थी वो जूठ मुठ का नाटक कर रहा था । क्योंकि उसे मेरी ये आदते अच्छी लगती थी ।

' अरे बाबा , तुम तो नाराज़ हो गए । मैंने तो मजाक मजाक में मार दिया । मुझे क्या पता था तुम्हे बुरा लग जायेगा । सॉरी बस ...' मैंने एकदम छोटे बच्चे वाली आवाज बनाकर उसे कहा ।

' ओ नोटंकी बस हा । तू कभी नही सुधरेगी मैं भी न किससे बहस कर रहा हूँ । और कितनी बार बोला है तुझे ये बार बार सॉरी मत बोला कर । मुझे अच्छा नही लगता । ' उसने मुझे डाँटते हुए कहा ।

' ओके बाबा , नही बोलूँगी बस । लेकिन तू गुस्सा भी नही करेगा अगर मैं तुझे कुछ बोल दूँ तो । मैं तुम्हे सॉरी इसीलिए बोलती हूँ क्योकि गुस्सा तो भाईसाहब की नाक पे सवार रहता है । ' मैंने भद्दा सा मुँह बनाते हुए कहा ।

' और तुम्हारे जैसा ओर कोई दोस्त भी तो नही है मेरे पास । तुम अलग हो सबसे । ' मैंने उसकी तारीफ करते हुए कहा ।

' तुम भी अलग हो सबसे । मतलब की बाकी लड़कियों से कुछ अलग । ' उसने जवाब में मेरी भी तारीफ की ।

' क्या सच मे तुम्हे ऐसा लगता है । क्योंकि मुझे तो ऐसा नही लगता । मतलब ऐसा क्या खास है मुझमें जरा मुझे भी बताओ ? ' मैंने उससे सवाल करते हुए कहा । वैसे भी लड़कियों को तारीफ सुन्ना अच्छा लगता है लेकिन हाँ अगर वो दिल से की गई हो तो ही ।

' हाँ हाँ बताता हूँ । दो खास चीजे है तुममे जो तुम्हे बाकियो से अलग बनाती है ।
एक तुम कितना खाती हो यार , और दूसरा तुम कितना बोलती हो । मैंने आज तक ऐसी लड़की नही देखी जो इतना खाती हो या फिर इतना बोलती हो । ' उसने खिलखिलाकर हँसते हुए कहा । लेकिन मेरे चेहरे के हावभाव बदलते देख उसने तुरंत कहा ।

' ठीक है ठीक है मैं मजाक कर रहा था । ज्यादा गुस्सा करने की जरूरत नही है । तुम अलग हो क्योकि तुम्हारा दिल साफ है । तुम्हे किसी बात से फर्क नही पड़ता । तुम हमेशा हँसते हुए ही नजर आती हो । तुम बहोत मजबूत हो । ' उसने मेरी सच्ची तारीफ करते हुए कहा ।

' हाँ ठीक है ठीक है । अब बस भी करो मुझसे हजम नही होगी इतनी तारीफ । कही मैं हवा में न उड़ने लगु । ' मैंने सामान्य दिखने का प्रयास करते हुए कहा ।

' अच्छा चलो अब मैं चलती हूँ । वक़्त भी हो गया है । थोड़ी भी देर से पहोचुंगी तो हजार सवाल मेरा इंतेजार कर रहे होंगे और इस वक़्त मुझमे जरा सी भी ताकत नही है उन सवालों का जवाब देने की । ' मैने उससे इजाजत मांगते हुए कहा ।

' तो कल मिल पाओगी ? ' उसने उम्मीद से पूछते हुए कहा ।

' हम रोज मिलते ही तो है chat पे । ' मैने जवाब देते हुए कहा ।

' नहीं , हाँ वो भी ठीक बात है , ठीक है । bye सिया । ' उसने मुझे अलविदा कहा ।

' मैं कोशिश करूँगी लेकिन पक्का नही बोल सकती । bye वंश । ' मैने भी उसे by कहा और ....'




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